तूफान
छुपे हज़ारों अंदर,बाहर शांत हूँ...!
अपने
दोस्त की खुशियाँ को रख के तराजू में...,
अपनी जान मैं दूसरे पलड़े में रखती हूँ...!
कुछ नहीं
माँगा रब से, तो भला क्या माँगू बंदों से...,
शान
नवाबों सी ,मुफलिसी में भी मैं आम रखती
हूँ...!
ज़मीर को
ज़िंदा रख कर, मुर्दों की इस बस्ती में...,
उसूलों का
तेरे मैं मान रखती हूँ, ऐ जिंदगी...!!!
दीप
Nice thought and way of expression.
ReplyDeleteThank you Jyotirmoy...glad you like my pen work :)
DeleteNicely woven, felt nice reading the same. Keep writing :)
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