सुनो...
सुनो… तुम यूँ “ख़ामोश” से न रहा करो...,
यूँ जो अक्सर तुम “खामोश” से हो जाते हो...,
तो ना जाने क्यों दिल को “वहम” सा हो जाता है...!
की कहीं तुम “खफा” तो नही हो...?
या कहीं किसी बात से “उदास” तो नही हो…??
जब तुम “बोलते” हो तो अच्छे लगते हो...,
तुम जब “लड़ते झगड़ते ” हो तब भी अच्छे लगते हो...!
कभी तुम्हारी मुझे सताने
वाली “शरारत” में, तो कभी “गुस्से” में...,
जब तुम “हँसते” तो अच्छे लगते हो...!
सुनो… तुम यूँ “ख़ामोश ” से न रहा करो....!!!
दीप