कश्मकश और उलझनों से घिरी, मैं उम्मीद की ढाल लिए बैठी हूँ
…,
तेरी हर चाल के लिए , ऐ जिंदगी मैं दो चाल लिए बैठी हूँ...|
आँख – मिचौली का... लुत्फ़ उठा रही हूँ मैं भी …,
कभी तो मिलेगी कामयाबी हौसला कुछ कमाल ही लिए बैठी
हूँ...l
दो-चार दिन ही सही चल मेरे मुताबिक...,
पहलु में अपने ये सुनहरा साल लिए बैठी हूँ...l
तुझे मुबारक़ ये गहराइयां, ये लहरें, ये तोफ़ा तेरा …,
नहीं फ़िक्र मुझे मैं कश्तियां और दोस्त बेमिसाल लिए
बैठी हूँ…lll
दीप
सुंदर !
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