Thursday 25 September 2014

दर्द...

दर्द जब ढलने लगे आंसुओं में..,
बह जाने देना मेरी आँखों से..,
तुम भूल जाना अपना हर काश–म–कश ज़माने में..,
बस आना मेरी बाहों में और यही रह जाना...!!!

Monday 15 September 2014

जिंदगी....

जिंदगी....

जिंदगी....



ये किस रफ़्तार से चल रही है जिंदगी...,

ना  तो भाग रही है, ना ही दौड़ रही है जिंदगी बस रेतकी तरह हाथों से सरक रही है जिंदगी...

अस्पताल के इस कमरे की बेरंग सी दीवारों की तरह सी हो चली है जिंदगी...

खिड़की से बहार जबभी  देखती हूँ बारिश की ये नरम गरम बूंदे...

लगता है अब भी कहीं कुछ बची है जिंदगी...

हर आहट पर होता है इंतज़ार किसी अपने के आने का...

पर अब  कहाँ कोई मेरा अपना आएगा जिंदगी...

जब कभी मुई नर्स देती है कड़वी दवाइयाँ बरबस याद आ जाती है माँ की वो मीठी फटकार.., 

पर अब कहाँ माँ की वो मीठी फटकार और वो दुलार अब तो बस ये बेबसी है जिंदगी...

जब भी डॉक्टर नब्ज़ देखने को हाथ थमता यकायक, याद आता है भाई,का वो हाथ थम चलना सीखना...
पर अब कहाँ ये सब जिंदगी अब तो बस धुंदली यादें है जिंदगी...

फिर भी ना जाने क्यों तुझ से ही बावस्ता है  सारी उमीदें जिंदगी...

गर दे साथ तो, फिर से ले एक लम्बी उड़ान जिंदगी जो ना हो मंज़ूर तो चल ले चल अपने देश जिंदगी...

किसी शायर ने क्या खूब कहा है "जिंदगी जिन्दा दिली का नाम है मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते है"...!!!

दीप