Tuesday 26 August 2014

शहादत...

शहादत...



पैरों तले से वक्त रेत खसकने नहीं देती..
साँसें धड़कनों में दफन होने नहीं देती..

मेरा ज़ज़्बा कदम रुकने नहीं देता..
घर की यादें मुझे आगे बढ़ने नहीं देती..

पर कमजोर होना मैंने सिखा नहीं..,
उड़ जाये गरदन झुकना सिखा नहीं..,

ग़र लड़खड़ा गया तो घर में चैन से सोयेगा कौन..
मेरी शहादत को मुद्दा बना कर रोयेगा कौन..

दफ्तर के लिए सुकून से जायेगा कौन..,
सरहद की खबरों को सुर्खियाँ बनायेगा कौन..

मेरी सोच को एक धमाके ने तोड़ दिया..,
हर खयाल को तब मैंने पिछे छोड़ दिया..,

गिद्ध की तरह दुश्मन निशाना साधे हुआ था..,
निगाहें गड़ाए उपर से हमें गिराने पर तुला हुआ था..

जय करते,दुवा माँगते, हम आगे बढ़ते रहे..,
तादात में बारी बारी हम खतम होते रहे..,

राम या रहीम नाम मिटता रहा, पर निशान ना मिटने दिया..,
अपने जान का वजूद उनके दिल से ना हटने दिया..,

मरता रहा कतरा कतरा, सैकड़ों को मारता रहा..,
साँस आखिरी तक हींद के झंडे को जीता रहा...

कुछ पल आखिरी और मुस्कुराहट लबों में...
माँ पिता बहन संगीनी सखा मेरे जहन में..,

आँसू ना बहाना तुम्हें हार कर मैं जीता हूँ..,
मेरा वक्त हो चला माफी दो मैं चलता हूँ..,

एक ख्वाहिश है मेरी शहादत को रुपयों में ना तोलना..,
देश के खातिर चाहत है तो दिल से जय हिंद जरूर कहना...!!!

जय हिँद...

दीप 

Monday 18 August 2014

चाँद भी आज़ उदास है...

चाँद भी आज़ उदास है...



अन्जानी सी राहों में, दूर तक इन नज़रो में... ,
तीश्नगी का मौसम है, तेरी बेरुखी का मौसम है...,

आज फिर नज़रो को उसी बीते कल की प्यास है...,
ऐसा लगता है जैसे, चाँद भी आज़ उदास है...,

सब रंग हुए फीके फीके,चाँद सितारे रूठे रूठे है...,
बादलों का शोर है कैसा, खिज़ां का ये दौर कैसा है...,

इस कदर अकेलेपन में फिर तुम्हारी तलाश है...,
ऐसा लगता है जैसे, चाँद भी बिन तुम्हारे उदास है...,

कितनी अजीब है ये दिल की वेह्शातें, और आस पास की अन्जानी आहटें...,
कैसा ये शोर, जिसको ढूँढना चाहो, उसको ही ढून्ढ ना पाओ...,

ये दिल फिर रहा हूँ दरबदर ,ना जाने क्यों आज़ भी उसकी आस है...,
ऐसा लगता है जैसे, चाँद भी आज़ उदास है...,

दो बात तो करे कोई, दो कदम साथ तो चले कोई...,
ख़ामोशी के पर्दो में, ज़ख़्म इस दिल पे गहरे है...,

काश वो एक बार मिले मुझसे तोफ़ा ए दर्द जिसका मेरे पास है...,
ऐसा लगता है जैसे, चाँद भी आज़ उदास है...!!!

दीप 


Friday 15 August 2014

दास्ताँ...

ना मिला कोई ऐसा जो करता वफ़ा हमसे...,
शिक़वा शिकायत करते भी तो क्या...,
हर रिश्ते से मिली जफ़ा हमको...,
छुपा लिया ये दर्द भी ख़ामोशी में...,
जो सुनाते अपनी दास्ताँ तो ना जाने कितनों को रुलाते...!!!


दीप 

Sunday 10 August 2014

ये जिंदगी क्या है...​

ये जिंदगी क्या है...​



जब हम खुश है तो बुहत प्यारी है जिंदगी..,
जब हम है दुखी तो उदास है ये जिंदगी...

जब होती थी दोस्तों संग हसीं ठिठौली वो थी जिंदगी..,
और आज जब खोजना पड़ता साथी कोई जो सुने दिल की बात ये भी है जिंदगी...

जब मन सोच में तब डूबा रहे तब बुहत गहरी है जिंदगी..,
जब हालत बुरे हो जाए, तो मुश्किल से लड़ना है जिंदगी... 
 
जब किसी के सामने झुकना पड़, तो ख़ामोश है जिंदगी..,
जब बुहत कुछ सहने पड़े तो लाचार है जिंदगी...

जब दुनिया सच्ची लगे तो मासूम है जिंदगी...
जब कुछ समझ ना आए, तो घोर अँधेरा है जिंदगी...

जब रास्ता नज़र आए, तो नई सुबह है जिंदगी..,
जब हर पल हो एक नई उलझन तो जंजाल है जिंदगी...

परिस्थियों के साँचे में खुद को ढालना ही है जिंदगी..,
सच पूछो दोस्तों...तो हर पल लड़ते जाना ही है नाम जिंदगी...!!!


दीप