Saturday 5 April 2014

Impromptu Poem...



कुछ तुम हो खोये खोये से, कुछ हम हैं खाली खाली से

उस पर ये रात की खामोशी और मेरी ये तन्हाई है

ये सर्द हवाएँ और तुम्हारे पास ना होने का ये एहसास

ये अकेलेपन और ये तन्हाइयाँ, और हमारी प्यारी मीठी यादें

कुछ मेरे अनकहे अल्फाज़ और वो दिल के छुपे जज़बात

ये लोगों का हुजूम है पास मेरे, फिर भी सब कुछ है ख़ाली ख़ाली

दीप

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