Monday 18 August 2014

चाँद भी आज़ उदास है...



अन्जानी सी राहों में, दूर तक इन नज़रो में... ,
तीश्नगी का मौसम है, तेरी बेरुखी का मौसम है...,

आज फिर नज़रो को उसी बीते कल की प्यास है...,
ऐसा लगता है जैसे, चाँद भी आज़ उदास है...,

सब रंग हुए फीके फीके,चाँद सितारे रूठे रूठे है...,
बादलों का शोर है कैसा, खिज़ां का ये दौर कैसा है...,

इस कदर अकेलेपन में फिर तुम्हारी तलाश है...,
ऐसा लगता है जैसे, चाँद भी बिन तुम्हारे उदास है...,

कितनी अजीब है ये दिल की वेह्शातें, और आस पास की अन्जानी आहटें...,
कैसा ये शोर, जिसको ढूँढना चाहो, उसको ही ढून्ढ ना पाओ...,

ये दिल फिर रहा हूँ दरबदर ,ना जाने क्यों आज़ भी उसकी आस है...,
ऐसा लगता है जैसे, चाँद भी आज़ उदास है...,

दो बात तो करे कोई, दो कदम साथ तो चले कोई...,
ख़ामोशी के पर्दो में, ज़ख़्म इस दिल पे गहरे है...,

काश वो एक बार मिले मुझसे तोफ़ा ए दर्द जिसका मेरे पास है...,
ऐसा लगता है जैसे, चाँद भी आज़ उदास है...!!!

दीप 


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