Tuesday, 17 March 2015

एक अक्स....


जेठ की तपती गर्मी में..., बारिश की ठंडी फ़ुहार है..वो...,

दिन की रोशनी में...,चाँद की शीतलता है..वो...,

रात के अँधेरे में...,सूरज की उज्वलता है..वो 

मिलती है...,जो सिर्फ मीठे ख़्वाबों से वो राहत है..वो,

चातक को मिली बारिश के पानी की बूँद है वो 

अब बस यही है...,चाहत की  बन जाये..वो सुनहरा ख़्वाब एक हकीक़त...,

हर पल हर घड़ी यही डर रहता...,बिखर न जाये टूटकर ये ख़्वाब..., 

एक अक्स सा रहता है...,मेरे आस-पास आजकल ख्यालों में मिलता है...!!!

दीप 

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