Sunday 24 May 2015

तजर्बे...


मिले तजर्बे हज़ारों-हज़ार जिंदगी में...,
लब ये मुस्कुरा उठते है यकायक...!
जो हो रूबरू गुज़रे वक़्त से...,
कितनी बेवकूफियों की होता एहसास...!
अब जो चाहे भी जिंदगी कुछ यु हो चली...,
गम छूटे एक गम से तो दूजे दर्द में डूब जाते है...!!!
 दीप 

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