कुचल गया मेरा वज़ूद ना जाने क्यों...,
वो जो हबीब था...बस बदल गया...!
ना जाने किस की हर्फ़-ए-दुआ थी...,
जो में गिर कर संभल गया...!
जब कभी तेरी याद ने सताया...,
मेरा दर्द-ए-दिल...कुछ बेहाल गया...!
मेरी किस्मत का काफ़िला...,
ना जाने क्यों किसी और की जानिब निकल गया...!
ताकते थे...उन्हें बेवजह-बेसबब...,
अनजाने ही मेरा अनकहा ख़्वाब मचल गया ...!
मैं हर तरह मजबूत था ...,
ना जाने क्यों...तेरे आगे यू पिघल गया...!!!
दीप
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