ना कोई दोस्त है...,ना कोई रक़ीब है...,
ये इमारतों
का शहर कितना अजीब है...!
वो इश्क़ था...,जो मेरा जूनून था...,
ये जो जुदाई है...,वो मेरा नसीब है...!
ये रंग बदलती दुनिया...,हर पल रंग बदलती है...,
यहाँ कैसे चेहरा पढ़ें कोई...,ये नक़ाब पोशो की भीड़ है...!
यहाँ कौन मेरे इतना करीब है...,
मैं किसे कहुँ...,दो घड़ी मेरे साथ चल...!
यहाँ सब की सोच अलग है..,अजीब है...,
गिला करे या शिकायत करे भी तो किस से करे...!
ना कोई दोस्त है...,ना कोई रक़ीब है...,
ये इमारतों
का शहर कितना अजीब है...!!!
दीप
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