सोचती हूँ.., बुहत हुआ आज कह ही देती हूँ..,
अपने दिल की बात तुमसे, बता ही देती हूँ..
अपने अंतर में चल रहे अंतरयुध्द के बारे में..,
मेरे दिल के जज़्बात मेरे एहसास... और मेरा प्यार तुम्हारे लिए...
फिर सोचती हूँ क्या लिखू.., पर हाँ लिखना तो है...,
मेरे दिल के जज़्बात मेरे एहसास... और मेरा प्यार तुम्हारे लिए...
फिर सोचती हूँ क्या लिखू.., पर हाँ लिखना तो है...,
परन्तु क्या और कैसे..., जो तुम समझ पढ़ सको समझ सको
कहाँ से शुरू करू..., जब उस दिन दफ्तर में अचानक हुई टक्कर के बाद...,
बरबस तुमसे नज़रें मिली
या उस दिन जब साथ साथ कॉफ़ी पीते हुए
तुम्हारे हाथों ने छुआ था मेरे हाथों को...
फिर वो तुम्हारी और मेरी कभी ना खत्म होने वाली लम्बी बातें ...,
या फिर वो दिन जब बातों ही बातो में तुमने कहा था...,
फिर वो तुम्हारी और मेरी कभी ना खत्म होने वाली लम्बी बातें ...,
या फिर वो दिन जब बातों ही बातो में तुमने कहा था...,
तुम्हे प्यार है मुझसे...
फिर सोचती हूँ क्या लिखू..., पर हाँ लिखना तो है...,
फिर सोचती हूँ क्या लिखू..., पर हाँ लिखना तो है...,
कहाँ से शुरू करू क्या - क्या लिखू...
और फिर वो दिन जब वक़्त और मजबूरीयों की वज़ह से...,
और फिर वो दिन जब वक़्त और मजबूरीयों की वज़ह से...,
तुम दूर हुए मुझसे
और फिर वो वक़्त जब तुम भूलने लगे मुझे..., दूरियाँ बनाने लगे...
फिर अचानक एक दिन..., जब तुम ने हर नाता तोड़ दिया,
और फिर वो वक़्त जब तुम भूलने लगे मुझे..., दूरियाँ बनाने लगे...
फिर अचानक एक दिन..., जब तुम ने हर नाता तोड़ दिया,
दिल का रिश्ता छोड़ दिया...
कितने अनकहे सवाल थे.., जिनके जवाब नहीं दिए तुमने..,
कितने अनकहे सवाल थे.., जिनके जवाब नहीं दिए तुमने..,
कितना कितनी कोशिश की तुमसे कोई राब्ता हो...,
पर तुमने कहाँ मौका दिया कोई बात कहने - करने का...
मुझे छोड़ दिया दर्द और आँसुओ के साथ अकेले...,
पर तुमने कहाँ मौका दिया कोई बात कहने - करने का...
मुझे छोड़ दिया दर्द और आँसुओ के साथ अकेले...,
अकेले कितने अनसुलझे सवालों के साथ...
क्या क्या लिखू..., कैसे कहु.., कहने को तो बुहत कुछ हैं ...
क्या क्या लिखू..., कैसे कहु.., कहने को तो बुहत कुछ हैं ...
जो अनकहा रह गया है ...
पर बस बुहत हुआ अब और नहीं रोना..., अब एक बार फिर से जीना है...
चलो छोड़ो अब तुम्हे मैं क्या और क्यों लिखू....।।।
चलो छोड़ो अब तुम्हे मैं क्या और क्यों लिखू....।।।
दीप
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