आज ज़िंदगी
के इस मोड़ पर...,
लगता है..,कुछ छूट गया सा ....
कल जो देखे थे सपने कभी बड़े होंगे... ,
आज दिल कहता है फिर बच्चा बन जाने को ...!
याद आती है, वो रोज़ की शैतानियाँ...,
वो सारे खेल खिलोने,
वो नानी दादी की कहानियाँ...,
पापा का वो कंधा और माँ की वो लोरियाँ...,
भूला नहीं पाता, क्यूँ दिल उन उन बीते लम्हों को ...,
आज दिल कहता है फिर बच्चा बन जाने को ...!
थी जो बेफ़िक्र दुनिया की मुश्किलों से...,
जिंदगी की पेचीदगियों से ना थे वाकिफ़...,
पूरी दुनिया अपनी अपनी सी लगती थी...,
पर क्यूँ दिल ये आज कुछ न होने का एहसास दिलाता है...,
आज दिल कहता है फिर बच्चा बन जाने को ...!
तब तो गैरों के सपने अपने से लगते थे,
आज ही नींद खुद से भी बेगानीहुई है...,
हर एक पल मे खुशियाँ
ढूंढ लेता था ये दिल...,
आज जो अपना नहीं उसका गम सताता है...,
आज दिल कहता है फिर बच्चा बन जाने को ...!
अक्सर दिलकहता
एक बार जी लू फिर से उन लम्हो को...,
दुआ है उस खुदा से ,लौटा दे वो पल मुझे चंद लम्हे ही सही...,
सिर्फ़ यादें के ही बाक़ी रही, जो लौट न आएगा कभी...,
'बचपन' जिसे सारा ज़माना कहता है....,
दीप
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