हर पहर जिसकी लौ से..,तस्वीर बना करती है...,
मेरे पहलु में भी..,ऐसी ही एक शमा जला करती है..!
सहमी सी धड़कनो में है जो बात...,
वो इन खामोश आखो से बयां होती है...!
शोर सा है हर सू..,आखें है बयाबान..,
हर ओर तेरी ही आवाज सुनाई देती है...!
ख़ामोश क्यों हो..,हमसे कोई बात करो या ख़ुदा..,
दिन भर अब जिंदगी..,तेरे सजदे में हुआ करती है...!
शमा जलती है..,तो ज़माने को पता चलता है..,
दिल के जलने की ख़बर..,आख़िर किसको हुआ करती है...!!!
दीप
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