कैसी होती है...,ये तन्हाईयाँ...,
कुछ अलग नहीं पर शायद...
तुम्हारे या मेरे जैसी होती है...!
इस दुनिया के में मेरे और तुम्हारे...,
अपनों और अनजानों की भीड़ में...!
तुम्हे और मुझे कुछ थोड़ा...,
और अकेला सा पाया है...!
दोस्तों के साथ के कहकहे में...,
उस हँसी के पीछे छिपी उदासी है...!
जिक्र हो तुम्हारा या बात हो मेरी...,
या-ख़ुदा ने क्या खूब आजमाया है...!
इस दिल के किसी कोने में फिर भी...,
एक टीस सी अब तलक बाक़ी है...!
फिर भी अफ़सोस है इस दिल को...,
आज़ तक ना तुम ही समझें...,
और ना ही मैं समझा पायी तुम्हें...!!!
दीप
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