Thursday 15 October 2015

बस यू ही ...



सूखे पेड़ो की...
मोटी  पतली  टहनियाँ की छाँव...,
बैठकर वीरान अकेले में...
देर तक,रहती थी...सोचती...,
शायद...,जिंदगी की'लम्बी राहों में ...
ना जाने कौन मिलेगा...
इस लंबी राह पर...
अनगिनत राही जो मिलेंगे ठहरेगे...
इर्द-गिर्द मेरे इस जीवन के...
फिर शायद कभी किसी दिन...
कहीं तो कोई तो होगा अपना...
जिसे देख लगे ...
जिंदा हूँ अभी मैं...
कुछ शिकायते-सी शिकवे से हो...,
और फिर उस दिन कफ़न से मुझे ढप देना फिर वही...!!!
दीप

Author:

0 comments: