Thursday 29 October 2015

मुमकिन नहीं...



देखा नहीं जिसे एक मुद्दत से...
वो उतरा नहीं मेरे जहन से...,
वो टूटकर आज भीआता है याद...
मैं रात भर सोती नहीं आज भी...,
कोई तो  उसको जाकर बताए...
मेरे इन जज़्बातों को...
उसके लिये मैं टूट तो गई हूँ...,
बिखरी  नहीं मैं टूटकर भी ...
जो गिरे थे जो आंसू उसकी तस्वीर पर...,
वो सूखा नहीं आज भी...
जो दर्द था दिल में मेरे...,
उसका मिला नहीं कोई मरहम
उसे ही चाहूँगी  मैं तो उम्र भर...,
उसे भुलाऊंगी, मैंने जो वादे किये थे...
कह हो अपने वादे पे  कायम...,
झूठा नहीं मेरा कोई वादा ….
मैं खुद को भूल सकती हूँ...,
ये अब मुमकिन नहीं..., मैं भूल जाऊं उसे ...
ये अब मुमकिन नहीं!!!


दीप

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