इसअजनबियों की दुनिया में...,एक अकेला ख्वाब हूँ मैं...,
सवालों से खफ़ा...,
छोटा सा जवाब हूँ...!
जो ना समझे मुझे...,उनके लिए एक सवाल हूँ मैं...,
समझे जो कोई मुझे...,तो दिलचस्प
किताब हूँ...!
जाने क्यों कुछ लोगों के...,दिल में चुभती फ़ास हूँ मैं...,
माने जो कोई अपना तो हमदर्द..., वैसे तो ख़राब हूँ...!
साथ रहे जो हरपल ऐसा...,
मददगार हूँ मैं...,
जिसका ना कोई तलबगार...,वो चमकता आफ़ताब हूँ...!
जो देखोगे आँखों से...,तो खुश पाओगे मुझे...,
दिलमें जो देखोगें...,
तो दर्द का सैलाब हूँ...!!!
दीप
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