Sunday 26 October 2014

हमकदम...

हमकदम...


मेरे दिल की किताब को कभी पढ़ना तुम...,
सपनो में आके मुझसे मिलना कभी तुम ...

मैंने दुनिया सजाई है तुम्हारे लिए ...,
मेरी नज़रों की उम्मीद बनकर कभी आना तुम ...

माना बहुत दूर है सितारों का वो रोशन जहान..., 
पर मुझे कहाँ चाह उस जहाँ की जब हमकदम हो तुम...
बस इतनी सी है इलत्ज़ज़ा तुम से ...,
के जरा चंद कदम हमकदम बनके मेरे साथ चलना कभी तुम ....

बहुत नादान है, नाज़ुक है सीने में दिल मेरा ...,
तुम मौहब्बत बनके इस में 
धड़कना कभी ....

दीप 

Tuesday 7 October 2014

शिकायत...

रोज एक नई शिकायत है इस दिल से...,

ना जाने क्यों इसे इतनी मौहब्बत है आपसे...,


क्या करे मजबूर है दिल से...,


दिमाग को तो दूरियों की चाहत है आपसे...!!!


दीप

Wednesday 1 October 2014

भीगी आँखें.....



भीगी आँखें से मुस्कुराने का मज़ा और ही है...

हँसते मुस्कुराते आँखें नम हो जाने का मज़ा और है...

लफ्ज़ो में बात तो कोई भी समझ लेता है...

बिन कहे कोई, ख़ामोशी समझ जाए तो मज़ा और है...!!!

दीप