Friday 26 February 2016

सुनो...



सुनोतुम यूँ ख़ामोशसे न रहा करो...,

यूँ  जो अक्सर तुम खामोशसे हो जाते हो...,
तो ना जाने क्यों दिल को वहमसा हो जाता है...!

की कहीं तुम खफातो नही हो...?
या कहीं किसी बात से उदासतो नही हो…??

जब तुम बोलतेहो तो अच्छे लगते हो...,
तुम जब  लड़ते झगड़ते हो तब भी अच्छे लगते हो...!

कभी तुम्हारी मुझे सताने वाली शरारतमें, तो कभी गुस्सेमें...,
जब तुम हँसतेतो अच्छे लगते हो...!

सुनोतुम यूँ ख़ामोश से न रहा करो....!!!


दीप

Wednesday 24 February 2016

जश्न ए रेख़्ता और मैं.....





मेरा पहला सफर रेख्ता के साथ दो साल पहले एक मुशायरे में शिरक़त से हुआ जहाँ मै, मरहूम निदा फ़ाज़ली जी  सुनने  गयी थी !

लिखती तो मैं पहले भी पर उस दिन के बाद से उर्दू से मेरा प्यार और बढ़ गया, और जब इस साल जश्न -ए -रेख़्ता का ऐलान हुआ,तो दिल ने जैसे ठान लिया किसी तरह भी इस का हिस्सा बनाना ही है !

Monday 22 February 2016

बेच...

बेच...


कोई अपनी टोपी बेच देता है...,
तो कोई यहाँ अपनी पगड़ी बेच देता है...!

कोई अपना मज़हब बेच देता है...,
तो कोई यहाँ अपनी जात बेच देता है...!

गर जो मिले अगर दाम अच्छा...,
तो जज भी कुर्सी बेच देता है...!

जला देते है ससुराल में अक्सर वही बेटी...,
किडनी जिस बेटी की खातिर,कोई बाप बेच देता है...!

प्यार में कुर्बान हो जिस पर कोई मासूम लड़की...,
वो ही प्रेमी अक्सर वीडियो उसका,बनाकर बेच देता  है...!

नहीं कुछ भी नामुमकिन इस कलयुग में...,
माली यहाँ कली, फल फूल, पेड़ पौधे सब कुछ ही बेच देता है...!

हैरत क्यूँ हो लोगों को, जब प्यार में दिल हारे कोई...,
तो यहाँ तो युद्धिष्ठिर अपनी पत्नी जुए में  बेच देता है….!!!


दीप

Thursday 18 February 2016

कैसे कहुँ....

कैसे कहुँ....


कैसे कहुँ के तुम मेरे दिल के कितने करीब हो...,

जिस के साथ से मिले एहसास जन्नत का...,मेरा वो नसीब हो...,

हवा जो चले हल्की हल्की...,लगे की तुमने छुआ हैं...,

बजता हो सुरीला गीत..., जो तुम कह दो होले से कुछ कानों में...,

गुस्सा तुम्हारा जैसे सूरज की मद्धम धूप...,

प्यार तुम्हारा गहरा ऐसे जैसे से हो घने जंगल की छाँव...,

दिले की बस ये ही तमन्ना तेरी ही बाँहो में रहू....,

कैसे कहुँ के तुम मेरे दिल के कितने करीब हो....!!!



दीप

Tuesday 9 February 2016

उस मोड़ पर...

उस मोड़ पर...


मिलना हैं तुमसे उसी मोड़ पर...

जहाँ कभी बिछड़े थे हम दोनों...,
हाँ वही उसी  मोड़ पर...!

ना जाना हो पीछे  तुम्हें जहाँ से...,
छोड़ मुझे आगे भी ना जा सको...!

मिलना हैं तुमसे उसी मोड़ पर...

जहा चलती  ठंडी पुरवाई  के झोके...,
बांध ले मुझे भी तुम संग...!

रंग ले अपने ही  रंग में...,
एक मीठी सी कशिश में...!

मिलना हैं तुमसे उसी मोड़ पर...

बिखर जाऊ जब भी में...,
अमलताश के फूलों की तरह ...!

और फिर तुम समेट लो...,
आगोश में मुझे तुम ...!

मिलना हैं तुमसे उसी मोड़ पर...

सुनना चाहो तुम कुछ दिल से...,
और कहना चाहू मै कुछ अपने मन...!

मिलना हैं तुमसे उसी मोड़ पर...!!!


दीप