
Tuesday, 30 December 2014

Thursday, 25 December 2014
Monday, 22 December 2014
Thursday, 18 December 2014
Tuesday, 16 December 2014
Sunday, 14 December 2014
Thursday, 11 December 2014
Tuesday, 9 December 2014
Sunday, 7 December 2014

Harmony...
Harmony is
missing in life..
I fail to
understand why?
I don’t know
why?...
And I look upon
and around me
As the nature
will explain …
Wind will give
the answer
With a whisper in my ear …
Stars are
twinkling up above the sky
In their won
morsel code ….
I may catch hold
of myself
or
I may carry on
walkway of my life..
Silly to ask the
answers
As I couldn't
find the reason
What and why
happens in life…..
Harmony is
needed for sure
But I don’t
understand why and how its missing …
Deep
Wednesday, 3 December 2014
तेरे खयालो में...
तेरे खयालो में
ख्याल दिल को बस तेरा ही रहता है...
सताते रहते हैं, ये चाँद और तारे भी रात भर ..!!
फिर हमारी दिल्लगी में खलल रहता है...
चांदनी रातों में हर लम्हां दफन रहता है...!!
ये चाँद भी पागल है,जो निकलता है रातों को..,
चलता है रुक जाता है थके हुए मुसाफिर की तरह..!!
आता जाता रहता है जैसे तेरी याद हो...,
ताबीर की तलाश में अधूरे से कुछ ख्वाब हैं..!!
हर सुबह की किरण के साथ फिर ढूँढने निकलता है दिल...,
और लिखता रहता ये दिल अपनी दास्ताँ..!!
हिमायत में कुछ और बातें प्यार की...,
अंधेरों में भी खोजता है उजाला कोई ..!!
जिस्म ओ जान बे ख़याल है...,
फिर जी रहें हैं इन्हें सकूं की तलाश है..!!
तेरे बैटन की साख पे अबी रूह सफ़र करती है...,
तेरी मुस्कान से जिंदा हूँ ,जो बस याद में बाक़ी हैं..!!
कर के है मेहफ़ूज़ रखा दफ़न चांदनी रातों में...,
सताते है ये चाँद सितारें यूँ ही रात भर..!!
तेरे खयालो में..!!
दीप
Monday, 1 December 2014
Saturday, 29 November 2014
Where is the harmony in life...
Where is the harmony in life..., I don't
understand...
Am fail to understand this...And I look
up and around me...
As if my surroundings would give me the
answers...
I ask to wind and it whispers in my
ears...
The stars up above twinkle in their own
morsel code...
I catch hold of myself to carry on the
walkway of life...
How silly of me to think.., I could find
any answers...
Any reasons for what happens in this
life..., I don't understand...
Where is the harmony in life..., I don't
understand...
Deep
Tuesday, 18 November 2014
जज़्बात...
उम्र की लम्बी राहों में अक्सर रास्तें बदल ही जाते है...,
वक़्त की आँधी में इंसान बदल ही जाते है ...,
सोचती हूँ इतना ना याद करू तुम्हे लेकिन...,
आँखें बन्द होते ही मेरे इरादे और दिल के जज़्बात बदल जाते है ...!!!
वक़्त की आँधी में इंसान बदल ही जाते है ...,
सोचती हूँ इतना ना याद करू तुम्हे लेकिन...,
आँखें बन्द होते ही मेरे इरादे और दिल के जज़्बात बदल जाते है ...!!!
दीप
Sunday, 26 October 2014

हमकदम...
मेरे दिल की किताब को कभी पढ़ना तुम...,
सपनो में आके मुझसे मिलना कभी तुम ...
मैंने दुनिया सजाई है तुम्हारे लिए ...,
मेरी नज़रों की उम्मीद बनकर कभी आना तुम ...
माना बहुत दूर है सितारों का वो रोशन जहान...,
माना बहुत दूर है सितारों का वो रोशन जहान...,
पर मुझे कहाँ चाह उस जहाँ की जब हमकदम हो तुम...
बस इतनी सी है इलत्ज़ज़ा तुम से ...,
के जरा चंद कदम हमकदम बनके मेरे साथ चलना कभी तुम ....
बहुत नादान है, नाज़ुक है सीने में दिल मेरा ...,
तुम मौहब्बत बनके इस में धड़कना कभी ....
तुम मौहब्बत बनके इस में धड़कना कभी ....
दीप
Tuesday, 7 October 2014
शिकायत...
रोज एक नई शिकायत है इस दिल से...,
ना जाने क्यों इसे इतनी मौहब्बत है आपसे...,
क्या करे मजबूर है दिल से...,
दिमाग को तो दूरियों की चाहत है आपसे...!!!
दीप
ना जाने क्यों इसे इतनी मौहब्बत है आपसे...,
क्या करे मजबूर है दिल से...,
दिमाग को तो दूरियों की चाहत है आपसे...!!!
दीप
Wednesday, 1 October 2014
Thursday, 25 September 2014
दर्द...
दर्द जब ढलने लगे आंसुओं में..,
बह जाने देना मेरी आँखों से..,
तुम भूल जाना अपना हर काश–म–कश ज़माने में..,
बस आना मेरी बाहों में और यही रह जाना...!!!
बह जाने देना मेरी आँखों से..,
तुम भूल जाना अपना हर काश–म–कश ज़माने में..,
बस आना मेरी बाहों में और यही रह जाना...!!!
Monday, 15 September 2014

जिंदगी....
जिंदगी....
ये किस रफ़्तार से चल रही है जिंदगी...,
ना तो भाग रही है, ना ही दौड़ रही है जिंदगी बस रेतकी तरह हाथों से सरक रही है जिंदगी...
अस्पताल के इस कमरे की बेरंग सी दीवारों की तरह सी हो चली है जिंदगी...
खिड़की से बहार जबभी देखती हूँ बारिश की ये नरम गरम बूंदे...
लगता है अब भी कहीं कुछ बची है जिंदगी...
हर आहट पर होता है इंतज़ार किसी अपने के आने का...
पर अब कहाँ कोई मेरा अपना आएगा जिंदगी...
जब कभी मुई नर्स देती है कड़वी दवाइयाँ बरबस याद आ जाती है माँ की वो मीठी फटकार..,
पर अब कहाँ माँ की वो मीठी फटकार और वो दुलार अब तो बस ये बेबसी है जिंदगी...
जब भी डॉक्टर नब्ज़ देखने को हाथ थमता यकायक, याद आता है भाई,का वो हाथ थम चलना सीखना...
पर अब कहाँ ये सब जिंदगी अब तो बस धुंदली यादें है जिंदगी...
फिर भी ना जाने क्यों तुझ से ही बावस्ता है सारी उमीदें जिंदगी...
गर दे साथ तो, फिर से ले एक लम्बी उड़ान जिंदगी जो ना हो मंज़ूर तो चल ले चल अपने देश जिंदगी...
किसी शायर ने क्या खूब कहा है "जिंदगी जिन्दा दिली का नाम है मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते है"...!!!
दीप
Tuesday, 26 August 2014

शहादत...
पैरों तले से वक्त रेत खसकने नहीं देती..
साँसें धड़कनों में दफन होने नहीं देती..
साँसें धड़कनों में दफन होने नहीं देती..
मेरा ज़ज़्बा कदम रुकने नहीं देता..
घर की यादें मुझे आगे बढ़ने नहीं देती..
पर कमजोर होना मैंने सिखा नहीं..,
उड़ जाये गरदन झुकना सिखा नहीं..,
उड़ जाये गरदन झुकना सिखा नहीं..,
ग़र लड़खड़ा गया तो घर में चैन से सोयेगा कौन..
मेरी शहादत को मुद्दा बना कर रोयेगा कौन..
दफ्तर के लिए सुकून से जायेगा कौन..,
सरहद की खबरों को सुर्खियाँ बनायेगा कौन..
मेरी सोच को एक धमाके ने तोड़ दिया..,
हर खयाल को तब मैंने पिछे छोड़ दिया..,
हर खयाल को तब मैंने पिछे छोड़ दिया..,
गिद्ध की तरह दुश्मन निशाना साधे हुआ था..,
निगाहें गड़ाए उपर से हमें गिराने पर तुला हुआ था..
जय करते,दुवा माँगते, हम आगे बढ़ते रहे..,
तादात में बारी बारी हम खतम होते रहे..,
राम या रहीम नाम मिटता रहा, पर निशान ना मिटने दिया..,
अपने जान का वजूद उनके दिल से ना हटने दिया..,
मरता रहा कतरा कतरा, सैकड़ों को मारता रहा..,
साँस आखिरी तक हींद के झंडे को जीता रहा...
कुछ पल आखिरी और मुस्कुराहट लबों में...
माँ पिता बहन संगीनी सखा मेरे जहन में..,
माँ पिता बहन संगीनी सखा मेरे जहन में..,
आँसू ना बहाना तुम्हें हार कर मैं जीता हूँ..,
मेरा वक्त हो चला माफी दो मैं चलता हूँ..,
एक ख्वाहिश है मेरी शहादत को रुपयों में ना तोलना..,
देश के खातिर चाहत है तो दिल से जय हिंद जरूर कहना...!!!
देश के खातिर चाहत है तो दिल से जय हिंद जरूर कहना...!!!
जय हिँद...
दीप
Monday, 18 August 2014

चाँद भी आज़ उदास है...
अन्जानी सी राहों में, दूर तक इन नज़रो में... ,
तीश्नगी का मौसम है, तेरी बेरुखी का मौसम है...,
आज फिर नज़रो को उसी बीते कल की प्यास है...,
ऐसा लगता है जैसे, चाँद भी आज़ उदास है...,
सब रंग हुए फीके फीके,चाँद सितारे रूठे रूठे है...,
बादलों का शोर है कैसा, खिज़ां का ये दौर कैसा है...,
इस कदर अकेलेपन में फिर तुम्हारी तलाश है...,
ऐसा लगता है जैसे, चाँद भी बिन तुम्हारे उदास है...,
कितनी अजीब है ये दिल की वेह्शातें, और आस पास की अन्जानी आहटें...,
कैसा ये शोर, जिसको ढूँढना चाहो, उसको ही ढून्ढ ना पाओ...,
ये दिल फिर रहा हूँ दरबदर ,ना जाने क्यों आज़ भी उसकी आस है...,
ऐसा लगता है जैसे, चाँद भी आज़ उदास है...,
दो बात तो करे कोई, दो कदम साथ तो चले कोई...,
ख़ामोशी के पर्दो में, ज़ख़्म इस दिल पे गहरे है...,
काश वो एक बार मिले मुझसे तोफ़ा ए दर्द जिसका मेरे पास है...,
ऐसा लगता है जैसे, चाँद भी आज़ उदास है...!!!
दीप
Friday, 15 August 2014
दास्ताँ...
ना मिला कोई ऐसा जो करता वफ़ा हमसे...,
शिक़वा शिकायत करते भी तो क्या...,
हर रिश्ते से मिली जफ़ा हमको...,
छुपा लिया ये दर्द भी ख़ामोशी में...,
जो सुनाते अपनी दास्ताँ तो ना जाने कितनों को रुलाते...!!!
शिक़वा शिकायत करते भी तो क्या...,
हर रिश्ते से मिली जफ़ा हमको...,
छुपा लिया ये दर्द भी ख़ामोशी में...,
जो सुनाते अपनी दास्ताँ तो ना जाने कितनों को रुलाते...!!!
दीप
Sunday, 10 August 2014

ये जिंदगी क्या है...
जब हम खुश है तो बुहत प्यारी है जिंदगी..,
जब हम है दुखी तो उदास है ये जिंदगी...
जब होती थी दोस्तों संग हसीं ठिठौली वो थी जिंदगी..,
और आज जब खोजना पड़ता साथी कोई जो सुने दिल की बात ये भी है जिंदगी...
जब मन सोच में तब डूबा रहे तब बुहत गहरी है जिंदगी..,
जब हालत बुरे हो जाए, तो मुश्किल से लड़ना है जिंदगी...
जब किसी के सामने झुकना पड़, तो ख़ामोश है जिंदगी..,
जब बुहत कुछ सहने पड़े तो लाचार है जिंदगी...
जब दुनिया सच्ची लगे तो मासूम है जिंदगी...
जब कुछ समझ ना आए, तो घोर अँधेरा है जिंदगी...
जब रास्ता नज़र आए, तो नई सुबह है जिंदगी..,
जब हर पल हो एक नई उलझन तो जंजाल है जिंदगी...
परिस्थियों के साँचे में खुद को ढालना ही है जिंदगी..,
सच पूछो दोस्तों...तो हर पल लड़ते जाना ही है नाम जिंदगी...!!!
दीप
Sunday, 27 July 2014
Change of Heart....
What caused
this alteration of feelings in you?
I just want
to comprehend what happened
Because this detachment
is tearing me apart.
I conceal my
feeling from you, so you don’t see my pain,
I want you to
be happy, but my tears still fall like rain.
This aloofness
which keeps on growing, it hurts more with each passing day,
I want to be
by your side, to hear what you have to say.
I don’t know
how this started, and I don’t know how it will end,
But life without
you injures me progressively, but I’ll try and try.
I like the
person I’ve become, when you’re in my sight,
I’ve become a
better person, and for this I will fight.
I know that
God loves me, and He always does what’s right,
So I’ll just
wait and see what happens, I don’t want to reason a fight.
Even though
my heart is breaking, a little more every day,
I’ll never
let you see that, you’ll always think that I’m okay.
Deep
Thursday, 24 July 2014
Tuesday, 22 July 2014
दूरियाँ....
आज़ भी याद है मुझे, तुम अक्सर कहा करते थे....
दूर से देखने पर चीज़ें कितनी सुहावनी दिखती है...
शायद इसलिए तुमने ये दूरियाँ क़ायम कर ली...
गर तुमको ये मंजूर तो चलो ये भी सही....
हमने भी इन फसलों से अब मोहब्बत कर ली.!!
दीप
दूर से देखने पर चीज़ें कितनी सुहावनी दिखती है...
शायद इसलिए तुमने ये दूरियाँ क़ायम कर ली...
गर तुमको ये मंजूर तो चलो ये भी सही....
हमने भी इन फसलों से अब मोहब्बत कर ली.!!
दीप
Thursday, 17 July 2014
Alone in dark....
Again I found no one around,
I sense the loneliness and no shout
That was me broken and bent down,
Speak my love, before I could that was
already night
You were gone with just a breezy sigh I
clutched the soil in my hand,
Eyes were about bleed I shout out loud
To make some ears listen to howl
And to take a heed to my emotions
around,
I stood up again, but that was I am once
again broken and bent down
And it’s still the night, am waiting for
a wimp of fresh air to come and let me breath
Let this air guide me to the right
But that air didn't came around all I
have today my is fantasy to live in
I wish this is or this was nightmare,
but when I listen to my own mourn
Again feel broken with my head bury down
and I found no one
Being alone is the chosen stage now……
Get lost memories don’t you shout...Once
again I got the sign ........to survive alone !!
Deep
Sunday, 13 July 2014
Fallen...
Like these dark
black clouds as they hover over me
Life is yet
to exiling the weakness to darkness
A deep hollow
of emptiness to fall into opens up slowly inside me
Long lost memories
left in mistiness of hollowed emotions
A life hangs
in the equilibrium the wind passes over it which was once a dream
Brought to
life a nightmare now with no get away
For every gulp
of air and every wink of the watery eyes
Flickers the
faded vision of lost happiness fleeing with the light
Beyond these
clouds of darkness there might be a life with hope
As time goes
by it may bring a new beginning to the end
But now all
it is left behind is a voice, a voice left calling
For answers which
were never given a fading voice
The darkness
overcomes conquers the soul within
It was so
overwhelming that the petals of life with have fallen
Deep
Friday, 11 July 2014
अब खुद के लिए जीना है...
क्यों मेरा अस्तिव है आज मुझे पे भारी
भैया कि हॅसी तो थी अम्मा को प्यारी
अम्मा के आँचल के छाव में भी हैं बारी
क्यों मेरा अस्तिव है आज मुझे पे भारी
जन्म से अपने ही लोगों के बीच घिरी हूँ
घर गृहस्थी के नाम पर दबायी गई हूँ
टूटे अक्षरों में मैंने अपनी पहचान बनाना क्या सिखा
समाज़ और अपनों की नजऱों में खटकने लगी हूँ
मेरी जिंदगी से बोझल हुई मेरी किताबें सारी
क्यों मेरा अस्तिव है आज मुझे पे भारी
जानने लायक़ हुई तो शरीर पर पड़ती
हवस भरी भूखी नजरों को पहचाना
कभी छू कर तो कभी आँखों से
होता हैं यहाँ हर पल बलात्कार ये जाना
मेरी सुरक्षा मेरे भविष्य की गुहार देते
प्रथा के नाम पर अनजाने रिश्तों में बांध देते
आज़ फिर से मेरी भावनाओ को बिना सोचे
बिना समझे मुझसे बिना पूछे जैसे बेच दिया
ये कैसा स्नेह है पापा , माँ ये तेरी कैसी ज़िम्मेदारी
क्यों मेरा अस्तिव है आज मुझे पे भारी
आज़ मेरी नन्ही सी उम्र का वो एक अहम् पड़ाव पार हुआ
पहली रात से शुरू, मेरा जिस्म हर रात तार तार हुआ
मुझे झंझोड़ा गया, मुझे जिंदगी के हर मोड़ पर बस तोडा गया
कभी खुद को जन्म देने पर तो, कभी दहेज़ की ख़ातिर जलाया गया
बहुत सह लिया मैंने, तब अपनी बच्ची के लिया आवाज़ उठाई मैंने
भरी अदालत में अपने सिवा और किसी को ना साथ पाया मैंने
बंद कमरों में तो नोचा ही गया था अभी तक ,
अब बीच समाज़ हैं चीर हरण की तैयारी
क्यों मेरा अस्तिव है आज मुझे पे भारी
पर हार न मानी टूटे शरीर, बिखरे हौसलों को समेटा मैंने
अपने मान अपनी पहचान को हर कैद से छुड़ाया मैंने
कल जिस साथ के बिना मन में छिड़ थी हमेशा नाउम्मीद थी
आज उसी अकेलेपन को अपना आत्मविश्वास अपना आत्मबल बनाया मैंने
अब और नहीं होगा मेरा अस्तिव मुझे पे भारी
अब अपने सपनों को जी लेने की हैं बारी
दीप
Published in a Hindi monthly magazine' Aagman'
भैया कि हॅसी तो थी अम्मा को प्यारी
अम्मा के आँचल के छाव में भी हैं बारी
क्यों मेरा अस्तिव है आज मुझे पे भारी
जन्म से अपने ही लोगों के बीच घिरी हूँ
घर गृहस्थी के नाम पर दबायी गई हूँ
टूटे अक्षरों में मैंने अपनी पहचान बनाना क्या सिखा
समाज़ और अपनों की नजऱों में खटकने लगी हूँ
मेरी जिंदगी से बोझल हुई मेरी किताबें सारी
क्यों मेरा अस्तिव है आज मुझे पे भारी
जानने लायक़ हुई तो शरीर पर पड़ती
हवस भरी भूखी नजरों को पहचाना
कभी छू कर तो कभी आँखों से
होता हैं यहाँ हर पल बलात्कार ये जाना
मेरी सुरक्षा मेरे भविष्य की गुहार देते
प्रथा के नाम पर अनजाने रिश्तों में बांध देते
आज़ फिर से मेरी भावनाओ को बिना सोचे
बिना समझे मुझसे बिना पूछे जैसे बेच दिया
ये कैसा स्नेह है पापा , माँ ये तेरी कैसी ज़िम्मेदारी
क्यों मेरा अस्तिव है आज मुझे पे भारी
आज़ मेरी नन्ही सी उम्र का वो एक अहम् पड़ाव पार हुआ
पहली रात से शुरू, मेरा जिस्म हर रात तार तार हुआ
मुझे झंझोड़ा गया, मुझे जिंदगी के हर मोड़ पर बस तोडा गया
कभी खुद को जन्म देने पर तो, कभी दहेज़ की ख़ातिर जलाया गया
बहुत सह लिया मैंने, तब अपनी बच्ची के लिया आवाज़ उठाई मैंने
भरी अदालत में अपने सिवा और किसी को ना साथ पाया मैंने
बंद कमरों में तो नोचा ही गया था अभी तक ,
अब बीच समाज़ हैं चीर हरण की तैयारी
क्यों मेरा अस्तिव है आज मुझे पे भारी
पर हार न मानी टूटे शरीर, बिखरे हौसलों को समेटा मैंने
अपने मान अपनी पहचान को हर कैद से छुड़ाया मैंने
कल जिस साथ के बिना मन में छिड़ थी हमेशा नाउम्मीद थी
आज उसी अकेलेपन को अपना आत्मविश्वास अपना आत्मबल बनाया मैंने
अब और नहीं होगा मेरा अस्तिव मुझे पे भारी
अब अपने सपनों को जी लेने की हैं बारी
दीप
Published in a Hindi monthly magazine' Aagman'