तेरे हाथ का मखमली स्पर्श...अभी तक याद है, मुझे...
तेरे हाथों में मेरा हाथ था उस दिन मुझे छुआ था तूने...,
पढ़ी थी मैंने, महसूस की थी तेरे हाथों की सारी लकीरें..,
पर ना जाने क्यों एक भी लकीर परमेरा नाम ना लिखा था तूने...
अक्सर सोचती हूँ...तुम्हारे लिखे हुए उन खतों को ...,
वो सारे ख़त मैं बार- बार रोज़ - रोज़...,
क्यों ना जाने क्यों आज नही पढ़ती हूँ...,
वो सारे ख़त...मुझे क्यों आज भी प्यारे से लगते हैं...
तुम बस मेरा ख्याल तो नहीं हो मेरे महबूब...,
तुम पास नहीं आज.., पर ये खत सहारा जीने का...,
आज भी महसूस करती हूँ...तुम्हारे हाथों की महक...,
अपने हाथो को कभी कभी प्यार से सहला लेती हूँ मैं...,
तुम्हारे हाथों की वो छुअन...,वो सौधी सी मादक महक...
आज भी उन्हीं गलियों में, उसी चौराहे पर हूँ ...,
जहाँ आखिरी बार कभी हम मिले थे यहीं...,
जहाँ मेरे दर्द के बहती बूंदोको कभी छुआ था तूने...,
जहाँ अपनी रहा में खुद को गँवा तुझे पाया था मैने ...!!!
दीप
(Published in a anthology' Kavyashala')
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