बहुत सुना था शादी...,शादी...,
क्या होती है ये शादी-शादी...,
शायद किसी ने सोच समझ के रखा होगा नाम शादी...,
पर मतलब क्या है शादी का...?
सोचा लाख मगर कुछ ना सुझा...,
बस फिर लिख डाला "शादी "...,
उलट पलट के देखा बहुत...,
फिर भी हल ना निकला कुछ...,
थक हर कर ये ही समझा...,
ना कहो इसे बर्बादी...,
क्योंकि इसी से तो है...,आज देश में इतनी
आबादी...,
जो भी कहो दोस्तों, है...,जरुरी ये शादी...,
लड्डू ऐसे जो खाए वो.,पछताए...,
और ना खाए वो भी पछताए...,
यही है शादी..., हाँ यही है शादी...!!!
दीप
सुंदर !
ReplyDeleteलड्डू खाकर पछताना ही ठीक है.
शुक्रिया सर :)
Deleteउलट-पलट कर देखे तो शादी जीवन को दिशा देती है। सुंदर प्रस्तुति दीपाली जी।
ReplyDeleteशुक्रिया सर :)
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