इतना दर्द क्यों दे जाता है कोई हमें...,
अजनबी क्यों हो जाता है...,इंसान खुद से...!
इस दुनिया में यू तो हज़ारों चहरे हैं....,
तलाश क्यों रहती है..,फिर भी एक चेहरे की...!
इतना गहरा होता है...,क्या दर्द का रिश्ता...,
एक शिकायत बन जाए..,ज़िन्दगी खुद की...!
अब उसके बिन कैसे जिएंगे...,
नहीं रहे जिससे दूर
कभी हम...!
देख लिया होता.., एक बार मुड़ के तो...,
कितने आंसू थे...,ना जाने इन आँखों में...!
बेवफा सही...,मना चलो हम...,
कुछ नहीं तो...,ये एहसास ही सही...!
बदनाम थे..,हम तो कल भी....,
तो क्या नया हुआ...,जो आज भी हो गए...!
हज़ारों रिश्ते बिकते हैं..,यूँ तो दिलों के बाजार में...,
अगर बिक गया..., ये रिश्ता दर्द का...!
तेरा नाम हो जाए..,तो ताउम्र दिल से ये तकरार ही सही...,
तो ताउम्र दिल से ये तकरार ही सही...!!!
दीप
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