तन्हा है हम कहीं ..,कहीं वो तन्हा घर
में अकेले...,
देखूँ कब तक ये मंज़र अकेले मैं..,
सरगोशियाँ सी हैं..,आजकल हवाओं
में...!
एक से बढ़ कर एक फूल अकेले ही ...!
सफ़र पर हम चले थे अकेले ही..,
निगाहों ने देखी है..,नुमाइश हज़ारों
की..,
फ़लक में देखो तो..,परिंदा उड़ा जा
रहा अकेला ही..!
सीने के अंदर..., सुलगता रहा अकेले
जो ...,
इरादा जो किया ...,तुझ से बिछड़
जिलेगें ...!
ख़फ़ा तो नहीं हैं...,, ज़माने से 'दीप'...,
जो अक्सर अकेले...,, ही देखे गए
हैं..!
तन्हा है हम कहीं ..,कहीं वो तन्हा घर
में अकेले...!!!
दीप
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