ज़िन्दगी...
ज़िन्दगी आज जाने क्यों तू लगती है अजनबी सी कभी है घन्नी छाव ..कभी है घन्नी धुप सी ,
हर पल एक नया ही रंग है लगे है पल अनजानी सी जाने कहाँ से आई हू जाने कौन हू आज ज़िन्दगी तू लगती है अजनबी सी ,
तू ही बता में कौन हू ..यह क्यों हर तरह है अंधरे ..क्यों डर लग रहा क्यों मेरे उजाले कही खो गए क्यों आज काँटों से यह मंजर भरा भरा ,
कल जहाँ थी बहार ही बहार क्यों आज एक उदासी है छाई सी क्यों हर तरफ है मंजर मताम का क्यों हर आँख में नमी सी है ,
क्यों हर जुबां पर एक सवाल है ...क्यों हर दिल का एक ही ख्याल है कहाँ खो गयी वो रंगिनिया कहाँ खो गया वो आपनापन ,
कोई तो यह बताए दोस्तों क्यों आज यह इंसानियत रोती है क्यों हर आँख में चुप एक मोती है
ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी तू ही बता यह आज क्या हो गया ज़िन्दगी आज जाने क्यों तू लगती है अजनबी सी !!
दीप
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