नक़्श यादों के मिलते है..,तो रो पड़ती हूँ...,
जो उनका ख़त पढ़ती हूँ...,तो रो पड़ती हूँ...!
खून देखता हैं...,मेरे मरते हुए सपने का...,
ख़्वाब आँखों में बसाती हूँ...,तो रो पड़ती हूँ...!
लोग पूछते हैं...,मेरी उदासी का सबब...,
बात लोगों से छुपाती हूँ...,तो रो पड़ती हूँ...!
याद करते है...,तुन्हे टूट कर उस लम्हें...,
शाम चेहरा जो दिखती है...,तो रो पड़ती हूँ...!
यू तो बुहत ज़ब्त...,बड़े हौसले वाली हूँ...,
गम को ताहीर बनाती हूँ...,तो रो पड़ती हूँ...!!!
दीप
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