तुम्हारी जीत... मेरी हार सही...,
इस हार पर... दिल शर्मसार सही...!
तू मेरी दुनिया में...अब भी आबाद है...,
तेरी महफ़िल में...हम अब भी गुनेहगार सही...!
तुम्हारी जीत...मेरी हार सही...,
मोहलत है मेरे पास दो चार दिन की...!
तेरे पास रिश्तों में...फैंसलों की दौलत है...,
तेरे आगे दिलोँ की लम्बी कतार सही...!
इस कतार में मेरा दिल भी शुमार सही...,
तू मेरी दुनिया में...अब भी शाहदाब सही...!
तेरी महफ़िल में...हम अब भी गुनेहगार सही...,
तुम्हारी जीत...मेरी हार सही...!
इस हार पर...दिल शर्मसार सही...,
रात के पिछले पहर में...ख़्वाबों की गुफ़्तगू बरकार सही...!
मेरे कुछ सवालों पर...जवाबों की ज़ुस्तज़ु...,
तेरी ख़ामोशी में छुपा...तेरा इंकार सही...!
इस इंकार पे ये दिल ख़ुशी से बेज़ार सही...,
तू मेरी दुनिया में...अब भी मेहताब सही...!
ना जाने ये दिल किस रफ़्तार से चल रहा है...,
हम वैसे के वैसे रहे और ज़माने का बदल जाना सही...!
तेरी महफ़िल में...हम अब भी गुनेहगार सही...,
तुम्हारी जीत...मेरी हार सही...!!!
दीप
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