युँ तो बहुत से है..,दोस्त यहाँ फिर भी कुछ कमी सी है...,
घिरी हूँ..,चारो तरफ़ मुस्कुराते नक़ाबपोश चेहरो से...!
जिंदगी देने वाली उस मुस्कुराहट की कमी सी है...,
जिस ने दी जिंदगी की पहचान...,उस प्यार भरी नज़र की कमी...!
नित गुँजे नया ही किस्सा...,चारों ओर कोलाहल और ठहाको से...,
कानो में गुनगुनाति...,उस मीठी खामोशी कि कमी सी है...!
बढ़ है कदम मेरे...,पाने को नयी मन्ज़िलें निस दिन...,
साथ जिन का इन हाथो से छुट चुके...,उन नरम हाथो की कमी सी है...!
यु तो है हम जिन्दा आज..., फिर भी ना जाने क्यों..., ख़लिश सी...,
युँ तो बहुत से है दोस्त...,यहाँ फिर भी कुछ कमी सी है...!!!
दीप
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