ये शोर क्यों हैं...,दिल में कुछ अलग सा...
डोर क्यों है...,उलझी रिश्तो की तेरे मेरे...!
देख तो सही तेरे हाथो में जरा गौर से...
छोटी सी ही सही लकीर हैं तेरे प्यार की...!
कमजोर सी क्यों है...,फिर मेरी उम्मीद की डोर...
बंद की हैं मैने ये पलकें जब भी...!
आया है ख्वाबो में...,तेरा बस तेरा ही खयाल...
सिर्फ तेरा ही सरूर क्यों..,कुछ इस मुझ पर छाया है...!
नज़रें झुकी ही रही मेरी...,जब भी नजरें मिलायी हैं तुझसे...,
मेरे इश्क़ की तन्हाई और तेरे इश्क़ की गहरायी...!
अरसो से कैद थे दिल में...,जो जज़्बात तेरे लबो में...,
इज़हार-ए-इश्क़ से तेरे...,फिर ये दिल इस कदर बेताब क्यों है...!!!
दीप
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