Friday 2 May 2014

लकीरे...



आज मुझे ही नहीं जानते ये लोग जो मेरे हैं,
नहीं पहुचती अब रौशनी यहाँ, बाकी अँधेरे ही अँधेरे हैं |

हाथो में कहा हैं ,सब कुछ मिल जाए वो लकीर,
लकीरे मिली तो माथे में, वक्त के हेरे फेरे हैं |

खाली हाथ लौट रहे है,फिर तेरे शहर से टकराकर,
तेरी नाराज़गी के ये जो सख्त ऊँचे पहरे हैं |

दीप

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