देर-सवेर प्यार तो मिल ही जाता है...,सभी को जिंदगी में...,
फिर भी ना जाने क्यों...,लोग उसे यु ही छोड़ जाते है...!
दिल ही दिल रोते है...,बेरहम...,
क्या पाया -क्या खोया फिर हिसाब लगाते है...!
ऐ-नादिम इंसान...,रोता क्यों है...,अपने ही हाथों दिल खोता क्यों है...,
जो तेरा था कभी...,तूने आप ही गवांया है...!
अनजाने ही जिंदगी में तू बढ़ता गया...,
कुछ पाने की होड़ में सब छोड़ता गया...!
रे-नादान जाने या अनजाने...,
तू ना रहा इंसान...,बस शैतान बन गया...!!!
दीप
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