थोड़ी सी ख़ुशी.., थोड़ी सी जीने की वज़ह दे
दो...,
बढ़ते-बढ़ते सब छूट गए सब..., कुछ गए...
क्या कुछ सोचा था..., कुछ भी तो नहीं पाया...,
मुठ्ठी भर रेत निकल गया..., फिसली हुई रेत सा...
कभी ना हो सका कोई अपना
सा...
थोड़ी सी ख़ुशी..., थोड़ी सी जीने की वज़ह दे
दो...,
बारिश का मंजर..., हर वक़्त साथ रहता है...
टूटे हुए इस दिल को..., किसी ने समझा क्यों नहीं...,
डूबते डूबते और वो हमे
डिबोते जा रहे है...
ना जाने क्यों हम सोचते जा
रहे है...ना जाने क्यों हम बर्बाद हुए है...,
ये ख़लिश बन गई जिंदगी..., बस यू ही जीते जा रहे है...
थोड़ी सी ख़ुशी..., थोड़ी सी जीने की वज़ह दे
दो...!!!
दीप
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