मिलना हैं तुमसे उसी मोड़
पर...
जहाँ कभी बिछड़े थे हम दोनों...,
हाँ वही उसी मोड़ पर...!
ना जाना हो पीछे तुम्हें जहाँ से...,
छोड़ मुझे आगे भी ना जा सको...!
मिलना हैं तुमसे उसी मोड़
पर...
जहा चलती ठंडी पुरवाई
के झोके...,
बांध ले मुझे भी तुम संग...!
रंग ले अपने ही रंग में...,
एक मीठी सी कशिश में...!
मिलना हैं तुमसे उसी मोड़
पर...
बिखर जाऊ जब भी में...,
अमलताश के फूलों की तरह ...!
और फिर तुम समेट लो...,
आगोश में मुझे तुम ...!
मिलना हैं तुमसे उसी मोड़
पर...
सुनना चाहो तुम कुछ दिल से...,
और कहना चाहू मै कुछ अपने
मन...!
मिलना हैं तुमसे उसी मोड़
पर...!!!
दीप
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