एक अनजाना सा अपना सा अक्स..., रहता ख्यालों में हर घड़ी...,
उसके पास होने के अहसास से भर जाता..., फिज़ाओं में रंग सुनहरी...,
क्यों कर तलाशु उसे बाहर...,वो तो बसा है मुझमें ...कब से खबर ही न थी...,
ये क्या असर हुआ इस दिल पे...,ये कैसी कसक सी जगी...,
हुए हम अजनबी अपने ही इस घर में...,जहाँ बेख़ौफ़ चला करते थे कभी...,
एक अनजाना सा अपना सा अक्स..., रहता ख्यालों में हर घड़ी...!!!
दीप
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